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उत्तराखंड

उत्तराखंड खेत लीज पर देने वाला पहला राज्य बना

  • उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां सरकार ने कृषि भूमि को पट्टे पर देने की नीति बनाई है।
  • 30 साल की लीज पर जमीन देने के एवज में संबंधित किसान को जमीन का किराया मिलेगा। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, खेती, कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटियों, ऑफ-सीजन सब्जियों, दूध उत्पादन, चाय बागान, फल ​​संकरण और सौर ऊर्जा के लिए भूमि पट्टे की बाधाओं को इस कदम के साथ हटा दिया गया है।
  • राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद राज्य सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। अब कोई भी संस्था, कंपनी, फर्म या एनजीओ 30 साल के लिए लीज पर अधिकतम 30 एकड़ जमीन को पट्टे पर देकर गांवों में पट्टे पर कृषि भूमि ले सकता है।
  • विशेष परिस्थितियों में अधिक भूमि लेने का प्रावधान है। यदि कृषि भूमि के आसपास सरकारी जमीन है, तो उसे जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति से शुल्क का भुगतान करके पट्टे पर दिया जा सकता है। राज्य सरकार ने भूमि के समेकन में कठिनाइयों के मद्देनजर यह नीति बनाई है।

किसे होगा फायदा?

  • सरकार का कहना है कि इससे उत्तराखंड वासियों को बंजर या खाली पड़ी जमीन से भी आमदनी होगी और उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, लेकिन क्या ऐसा होगा?
  • जानेमाने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा के तहत  अब तक उत्तराखंड में बटाई पर तो खेती की जमीन देते थे, लेकिन उद्योगपतियों को जमीन लीज पर देने का मतलब किसान अपनी ही जमीन का श्रमिक बन जाएगा। उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य है, जो इस तरह का कदम उठा रहा है। देविंदर कहते हैं कि उत्तराखंड धीरे-धीरे कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग (ठेके पर खेती) की ओर बढ़ रहा है। लेकिन अब तक के ज्यादातर अध्ययन से पता चलता है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग बहुत उपयोगी साबित नहीं हुई है।
  • वह सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि सरकार कॉर्पोरेट्स को पैसा देने को तैयार है, लेकिन किसान को देने को तैयार नहीं। कंपनियों के लिए सरकार निवेश कर सकती है, लेकिन किसान की सुविधा के लिए नहीं। यही वजह है कि अब किसान खेती करना ही नहीं चाहता। अपने बच्चों से खेती नहीं करवाना चाहता। फिर जमीन का क्या होगा। अब हम इस स्तर पर आ पहुंचे हैं कि बंजर खेत उद्यमियों को देने की नौबत आ गई है। 
  • सरकार चकबंदी लागू करने में असफल रही तो अब यह तरीका निकाला है। राजभवन से अनुमति मिलने के बाद 21 जनवरी को अधिसूचना जारी कर दी गई है। उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भू-सुधार कानून-1950 में संशोधन के बाद यह व्यवस्था अब लागू हो गई है। इसके तहत किसान अधिकतम 30 एकड़ तक ज़मीन खेती, हॉर्टीकल्चर, जड़ी-बूटी उत्पादन, पॉलीहाउस, दुग्ध उत्पादन और सौर ऊर्जा के लिए किसी व्यक्ति, कंपनी या गैर-सरकारी संस्था को 30 वर्ष के लिए  लीज पर दे सकता है। इसके बदले उसे किराया मिलेगा। जिलाधिकारी के मार्फत ये कार्य किया जा सकेगा।
  • टिहरी के ग्राम सभा पाख (घनसाली) के किसान भगवान सिंह चौधरी कहते हैं कि यह कदम पहाड़ के हित में नहीं है। सरकार लोगों को खेती के लिए प्रशिक्षित नहीं कर सकी। जब वे पलायन कर रहे थे और उन्हें इकट्ठा करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
  • किसान पूछते हैं कि स्टार्टअप योजना, कौशल प्रशिक्षण केंद्र पर दी जा रही ट्रेनिंग का क्या हुआ। आप गांव के लोगों को सोलर पैनल लगाने की ट्रेनिंग देते। उन्हें एकजुट करके चाय बगान लगवाते।

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